
नई दिल्ली
टैरिफ पर अमेरिकी दादागीरी, ट्रंप के बड़बोले बयानों के बीच भारत ने यूएस समेत दुनिया को रणनीतिक स्वायत्तता का संदेश दिया है. रूस के साथ कच्चे तेल, S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर बात करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मॉस्को पहुंच चुके हैं. अगले कुछ ही दिनों में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी रूस की यात्रा पर जाने वाले हैं. भारत की ओर से ये दो हाई प्रोफाइल यात्राएं तब हो रही हैं जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को लगातार टैरिफ की धमकियां दे रहे हैं. ट्रंप की धमकी तब आ रही है जब वे भारत पर 25 फीसदी का टैरिफ लगा चुके हैं. इसके बाद मंगलवार को उन्होंने कहा कि भारत अच्छा ट्रेडिंग पार्टनर नहीं है और वे इंडिया पर टैरिफ को और भी बढ़ा देंगे. ट्रंप की आपत्ति भारत के रूस से कच्चे तेल की खरीद पर है. ट्रंप का आरोप है कि भारत इससे न सिर्फ रूस की वॉर मशीन को चला रहा है बल्कि इस तेल को बाजार में बेचकर फायदा भी कमा रहा है.
इस घड़ी में भारत ने रूस में अपने डिप्लोमैटिक मिशन को बेहद सक्रिय कर दिया है. भारत ने रूस से तेल खरीद पर स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता का परिचय देते हुए कहीं से भी यह मैसेज नहीं दिया है कि अब वो रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदेगा. भारत अभी अपनी जरूरत का 35 से 40 प्रतिशत कच्चा तेल रूस से खरीदता है. भारत चीन के बाद रूस के कच्चे तेल का दूसरा बड़ा खरीदार है.
गौरतलब है कि एनएसए अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर की रूस यात्राओं के बाद ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा भी प्रस्तावित है. हालांकि इसकी तारीख अभी तय नहीं है. बता दें कि ट्रंप भारत और रूस की अर्थव्यवस्थाओं को डेड इकोनॉमी बता चुके हैं. रूस ने ट्रंप की ओर से भारत को दी जा रही टैरिफ धमकियों को खारिज करते हुए कहा कि ये 'अवैध व्यावसायिक दबाव' हैं.
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा, "हम ऐसे कई बयान सुनते हैं जो दरअसल देशों को रूस के साथ व्यापारिक संबंध तोड़ने के लिए मजबूर करने की धमकियां और प्रयास हैं. हम ऐसे बयानों को वैध नहीं मानते. संप्रभु देशों को अपने हितों के आधार पर व्यापार और आर्थिक सहयोग में अपने साझेदार चुनने का अधिकार होना चाहिए और है भी." सोमवार रात को भारत केविदेश मंत्रालय ने अमेरिकी धमकियों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि "भारत को निशाना बनाना अनुचित और अविवेकपूर्ण है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि, "भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा."
डोभाल और रूसी लीडरशिप के बीच चर्चा के प्रमुख बिंदू
ट्रंप की धमकियों के बीच डोभाल और जयशंकर की यह यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और रूस के साथ दीर्घकालिक साझेदारी को मजबूत करने का स्पष्ट संदेश देती है. इन दोनों नेताओं की रूस दौरे पर इन मुद्दों पर चर्चा संभावित है. रक्षा सहयोग: अजित डोभाल रूसी समकक्षों के साथ रक्षा उद्योग सहयोग पर बातचीत करेंगे. इसमें अतिरिक्त S-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद, भारत में इसके रखरखाव के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्टर की स्थापना और रूसी Su-57 फाइटर जेट्स के खरीद पर चर्चा हो सकती है. रूसी तेल की आपूर्ति: इस दौरे में वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और रूसी तेल की आपूर्ति पर भी चर्चा होगी. भारत रूस से लगभग 35 से 40 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है. रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले ये आंकड़ा मात्र 0.2% था. रूसी तेल की कम कीमत ने भारत को घरेलू ईंधन की कीमतें स्थिर रखने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को समर्थन देने में मदद की है.
भारत ने जोर देकर कहा कि वह अपनी राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा को प्राथमिकता देगा. भारत ने कहा है कि हम अपने उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता देंगे. अगर रूसी कच्चा तेल अन्य स्रोतों से सस्ता है, तो हम अपने नागरिकों को क्यों दंडित करें.? ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने भी कहा कि भारत का रूसी तेल व्यापार पारदर्शी रहा है और यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थिर करने में मदद करता है. मोदी-पुतिन शिखर सम्मेलन की तैयारी: यह यात्रा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा और आगामी भारत-रूस शिखर सम्मेलन की तैयारियों का हिस्सा है.
भारत ने दिया रणनीतिक स्वायत्तता का संदेश
डोभाल और जयशंकर की मॉस्को यात्राएं भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता का मजबूत संदेश देती हैं. भारत और रूस के बीच संबंध 1947 से चले आ रहे हैं और 2000 में रणनीतिक साझेदारी संधि के बाद से हर साल शिखर सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं. 2021 से दोनों देश 2+2 वार्ता (विदेश और रक्षा मंत्रियों की संयुक्त बैठक) भी आयोजित करते हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ मतदान से परहेज किया है.
ट्रम्प की धमकियों के बावजूद भारत ने स्पष्ट किया है कि वह रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखेगा, यह न केवल तेल व्यापार तक सीमित है बल्कि रक्षा, ऊर्जा और उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को भी शामिल करता है. रूस ने भी भारत के व्यापारिक भागीदार चुनने के अधिकार का समर्थन किया है इसे संप्रभु देशों का मूलभूत अधिकार बताया.
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