जबलपुर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों को मनमानी फीस वसूली के मामले में हाईकोर्ट से राहत मिली है। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक रूसिया तथा जस्टिस प्रदीप मित्तल ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य के अधिकारियों ने बहुत ही खराब माहौल में काम किया और अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया। दो दर्जन से अधिक प्राइवेट स्कूल संचालकों ने मनमानी फीस वसूली के खिलाफ प्रकरण दर्ज किये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। अपील दायर करने वाले अधिकांश स्कूल मिशनरी संस्थाओं के द्वारा संचालित किये जा रहे थे। अपील में मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) अधिनियम, 2017 (जिसे आगे एक्ट कहा जाएगा) के सेक्शन 11 और मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) नियम के तहत फीस वापस लौटाने के आदेश जारी किये जाने को चुनौती दी गई थी।
अपील में कहा गया था कि राज्य की गाइडलाइन का कथित तौर पर उल्लंघन करने का आरोप में जिला प्रशासन की शिकायत पर पुलिस ने स्कूल प्रबंधन से जुडे व्यक्तियों तथा प्राचार्य पर प्रकरण दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार भी किया था। अपीलकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि एक्ट के सेक्शन 11 के तहत अंतरिम सुरक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है। एक्ट में प्रावधान नहीं होने के बावजूद भी साल 2017-18 के बाद से जमा की गई फीस वापस करने आदेश जारी किये गये हैं।
युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अधिकारियों ने बहुत खराब माहौल में और अपनी पावर का इस्तेमाल करते हुए अपने अधिकार से बाहर काम किया। राज्य के अधिकारियों का कार्य स्कूलों के मैनेजमेंट में दखलंदाज़ी के बराबर है। स्टूडेंट्स की फीस वापस करने का राज्य सरकार का निर्देश टिकने लायक नहीं है। अधिकारी आरोपों को साबित करने में नाकाम रहे।
अधिकारियों के पास फीस तय करने और अलग-अलग निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं है, जो स्कूल चलाने वाले मैनेजमेंट या सोसाइटी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। जिस तरह से लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने पूरे मामले को हैंडल किया, उससे स्कूल मैनेजमेंट और पैरेंट्स के बीच अनबन और मतभेद पैदा हो गए, जो स्टूडेंट्स की पढ़ाई और करियर के लिए अच्छा नहीं है। इस मामले को 2017 के एक्ट और 2020 के रूल्स के तहत सही तरीके से हैंडल किया जा सकता था। युगलपीठ ने फीस वापस करने के आदेश को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता स्कूलों को राहत प्रदान की।

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