
खैरागढ़
खैरागढ़ में बाढ़ के पानी ने इसबार एक जिंदगी भी छीन ली. इतवारी बाजार क्षेत्र में शीतला मंदिर के पास 20 वर्षीय युवक अमित यादव तेज बहाव में बह गया. वह दोस्तों के साथ बाढ़ के पानी में नहा रहा था और मंदिर की छत से कूदकर खेलते समय पानी की तेज धार में फंस गया. उसके साथ दो अन्य युवक भी बहे थे, जो किसी तरह बाहर निकल आए, लेकिन अमित लापता हो गया. देर शाम तक घर न लौटने पर परिजनों ने गुमशुदगी दर्ज कराई. रातभर पुलिस ने खोजबीन की, पर सफलता नहीं मिली. SDRF की टीम रविवार सुबह से सर्च ऑपरेशन चला रही है, लेकिन अब तक कोई सुराग नहीं मिला है.
अमित यादव अपने परिवार का इकलौता बेटा था. कुछ महीने पहले उसके पिता का निधन हुआ था और वह तीन बहनों व मां का एकमात्र सहारा था. घर में मातम पसरा है, मां बेसुध है और बहनें सदमे में हैं. इस हादसे के बाद सवाल प्रशासन की लापरवाही पर तो उठे ही हैं, लेकिन खैरागढ़ की बाढ़ समस्या की जड़ कहीं गहरी है, शहर में नाले और नदियों पर सालों से चले आ रहे अतिक्रमण. विशेषज्ञ और स्थानीय लोग वर्षों से चेताते आ रहे हैं कि शहरी सीमा के भीतर जहां-तहां नालों और जल निकासी मार्गों पर कब्जे कर लिए गए हैं, जिससे बाढ़ के पानी को निकलने का रास्ता नहीं मिलता. नतीजा — हर साल बारिश आते ही शहर जलमग्न हो जाता है, और जान-माल की तबाही होती है. शहर की हालत कोई नई नहीं है. हर साल यही दृश्य दोहराए जाते हैं, बारिश, बाढ़, राहत की खानापूर्ति और फिर सन्नाटा. लेकिन प्रशासन आज तक नदियों और नालों को अतिक्रमण मुक्त करने में असफल रहा है. न तो कोई ठोस कार्रवाई हुई, न ही कोई स्थायी समाधान.
विधायक प्रतिनिधि मनराखन देवांगन ने मौके पर पहुंचकर हालात का जायजा लिया और प्रशासन पर सीधा हमला बोला. उन्होंने कहा-“बगैर चेतावनी पानी छोड़ना जनता की जान से खिलवाड़ है. पिछले साल के बाढ़ पीड़ित आज तक मुआवज़े का इंतज़ार कर रहे हैं और अब फिर वही लापरवाही. प्रशासन सिर्फ कागजों में सक्रिय है, ज़मीन पर कुछ नहीं.” बिना किसी पूर्व सूचना या चेतावनी के प्रधानपाठ बैराज से अचानक पानी छोड़ा गया, जिससे खैरागढ़ शहर और आसपास के गांवों में अफरा-तफरी मच गई. इतवारी बाजार, जो शहर का प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र है, वहां दुकानों में पानी घुस गया और व्यापारियों का लाखो का सामान बह गया. कई किसानों की खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं.सबसे चिंताजनक स्थिति शहर की पिछड़ी बस्तियों में है, जहां न राहत शिविर हैं, न भोजन, न पीने का पानी. लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं.
प्रशासन ने अब आम जनता से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की है, लेकिन यह चेतावनी तब आई जब नुकसान हो चुका था. सवाल यह है कि प्रशासन ने हर साल दोहराई जाने वाली इस आपदा से निपटने की कोई स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं की? क्या शहर की जल निकासी व्यवस्था सुधारने की कोई गंभीर योजना कभी बनेगी? या फिर हर बारिश के बाद हम बस अफसोस की एक और खबर पढ़ेंगे?
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