
लखनऊ
उत्तर प्रदेश में बिजली दरें बढ़ सकती हैं। विद्युत नियामक आयोग में मंगलवार को उत्तर प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड (UPPTCL) और उत्तर प्रदेश स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर (UPSLDC) की वार्षिक राजस्व आवश्यकता और शुल्क पर अंतिम सुनवाई हुई। अब आयोग अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितंबर के पहले सप्ताह में अपना निर्णय सुना सकता है।
पहले 25 प्रतिशत तक कम लागत में कार्य
सुनवाई आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह की मौजूदगी में हुई। इसमें ट्रांसमिशन कारपोरेशन और यूपीएसएलडीसी के निदेशक भी शामिल हुए। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सुनवाई के दौरान आपत्ति जताते हुए कहा कि ट्रांसमिशन कारपोरेशन को टैरिफ बेस्ड कंपटीटिव बिडिंग (TBCB) व्यवस्था पर रोक लगानी चाहिए। पहले निगम 25 प्रतिशत तक कम लागत में कार्य करता था, जबकि अब निजी कंपनियां वही कार्य 25 प्रतिशत अधिक लागत पर कर रही हैं।
बढ़ी मांग पर ट्रांसमिशन सिस्टम कमजोर
ट्रांसमिशन कारपोरेशन ने इस बार 6,279 करोड़ रुपये की वार्षिक राजस्व आवश्यकता प्रस्तुत की है, जिसका बोझ सीधे उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। निगम के 132 केवी सब-स्टेशनों की कुल क्षमता 69,232 एमवीए बताई गई है, जो 6.23 करोड़ किलोवाट भार के बराबर है। प्रदेश के 3.61 करोड़ उपभोक्ताओं का स्वीकृत भार लगभग 8.17 करोड़ किलोवाट है। गर्मियों में बढ़ी मांग पर ट्रांसमिशन सिस्टम कमजोर साबित होता है।
अब फैसला आयोग के हाथों में
अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया कि निगम पहले इक्विटी लाभांश पर 2 प्रतिशत रिटर्न लेता था, जबकि अब 14.5 प्रतिशत की मांग कर रहा है। इससे उपभोक्ताओं पर करीब 1,824 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यूपीएसएलडीसी को स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए। बिजली की मांग रहने के बावजूद उत्पादन इकाइयों को रिजर्व शटडाउन देना गलत है। अब फैसला आयोग के हाथों में है कि उपभोक्ताओं पर बिजली दरों का बोझ कितना बढ़ेगा।
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