
नई दिल्ली
सीनियर वकील और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गिरफ्तार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को उनके पद से हटाने से जुड़े बिल पर सरकार का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि दुरुपयोग की आशंका किसी कानून को अवैध नहीं बनाती है.
विशेष साक्षात्कार में उन्होंने इन विधेयकों को देश की राजनीति और राजनेताओं को शुद्धिकरण का प्रयास बताया और कहा कि इस कानून का विरोध करना “राई का पहाड़ बनाने” के समान है.
रोहतगी ने कहा, "दुरुपयोग की आशंका कानून को अमान्य नहीं बनाती. इसे कानून द्वारा स्थापित किया जा चुका है, अब अगर यह पाया जाता है कि कुछ मामलों में सत्तारूढ़ सरकार विपक्षी मंत्रियों को जेल वगैरह में डालने की कोशिश कर रही है, तो फिर आपके पास अदालतें तो हैं न? आप अदालत जा सकते हैं और अदालत आपको जमानत दे देती है."
जब उनसे विपक्ष के इस तर्क के बारे में पूछा गया कि यह विधेयक कुचलने वाला है, तो उन्होंने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि पद से हटाया जाना अस्थायी है और व्यक्ति जमानत पर रिहा होने पर फिर से पदभार ग्रहण कर सकता है.
उन्होंने कहा, "मेरी पहली राय यह है कि यह कानून इस देश की राजनीति में शुचिता बहाल करने और भ्रष्ट राजनेताओं को दूर करने का प्रयास है.
उन्होंने आगे कहा, "अब यह स्पष्ट है कि यह अकल्पनीय है कि कोई सरकार जेल से चलाई जा सकती है, वह भी एक महत्वपूर्ण मंत्री द्वारा. इसलिए, यह कानून स्वागत योग्य है."
उन्होंने कहा, "इसमें बहुत ज्यादा हल्ला-गुल्ला है और मुझे नहीं लगता कि यह कोई क्रूर विधेयक है. मेरा मतलब है कि यह राई का पहाड़ बनाने जैसा है."
रोहतगी ने बताया कि नया कानून वास्तव में किसी आरोपी को कानूनी लड़ाई में सशक्त बना सकता है. उन्होंने सुझाव दिया कि 30-दिन का नियम "उनके हाथ में एक हथियार होगा जिससे वे अदालत से जल्द से जल्द मामले पर विचार करने का अनुरोध कर सकेंगे" और जमानत प्रक्रिया में तेजी ला सकेंगे बजाय इसके कि जमानत प्रक्रिया में कई महीने लगें.
उन्होंने आगे कहा, "एक बार यह 30-दिन का नियम लागू हो जाने के बाद संबंधित अदालत से संपर्क करना और मामले का जल्द से जल्द निपटारा करने का अनुरोध करना उचित होगा ताकि 30-दिन की समय सीमा पार न हो. वास्तव में इससे अदालत तक पहुंचने में तेजी आएगी, बजाय इसके कि जमानत प्रक्रिया महीनों यहां तक कि छह से आठ महीनों तक खिंच जाए."
मुकुल रोहतगी ने इस तर्क का भी जवाब दिया कि यह बिल 'दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष' के सिद्धांत का खंडन करता है, उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में ये एक बुनियादी खामी तो है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सजा होने में 10 से 20 साल तक लग सकता है और इस दौरान एक व्यक्ति राजनीति में सक्रिय रह सकता है.
उन्होंने कहा, "हमारे देश में समस्या यह है कि दोषसिद्धि में 10 साल लग जाते हैं और चुनाव लड़ने की अयोग्यता भी दोषी साबित होने पर ही आधारित होती है. इसलिए 10 से 20 साल तक आप सक्रिय राजनीति में बने रह सकते हैं."
वरिष्ठ वकील रोहतगी ने कहा कि मौजूदा बहस आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन पर केंद्रित होनी चाहिए.
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