June 20, 2025

समाज में स्थिरता, सामंजस्य और सतत विकास करने के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय सबसे अहम: न्यायाधीश बी आर गवई

नई दिल्ली
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा है कि समाज के बड़े हिस्से को हाशिए पर रखने वाली असमानताओं पर ध्यान दिए बिना कोई भी देश असल में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा है कि समाज में स्थिरता, सामंजस्य और सतत विकास करने के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय सबसे अहम है। CJI बुधवार को मिलान में एक कार्यक्रम को संबोधित करने पहुंचे थे। इस दौरान CJI को सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों के प्रतिबिंब’’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। आमंत्रण के लिए चैंबर ऑफ इंटरनेशनल लॉयर्स को धन्यवाद देते हुए, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में पिछले 75 वर्षों में भारतीय संविधान की यात्रा महान रही है। जस्टिस गवई ने कहा, ‘‘भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में, मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि भारतीय संविधान के निर्माता इसके प्रावधानों का मसौदा तैयार करते समय सामाजिक-आर्थिक न्याय की अनिवार्यता को लेकर सचेत थे। संविधान को औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद तैयार किया गया था।’’

संवैधानिक आदर्शों का उत्पाद हूं- CJI गवई
उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैंने अक्सर कहा है, और मैं आज यहां फिर दोहराता हूं कि समावेश और परिवर्तन के इस संवैधानिक दृष्टिकोण के कारण ही मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में आपके सामने खड़ा हूं। ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाली पृष्ठभूमि से आने के बाद, मैं उन्हीं संवैधानिक आदर्शों का उत्पाद हूं, जो अवसरों को लोकतांत्रिक बनाने और जाति की बेड़ियों को तोड़ने की मांग करते हैं।’’

सामाजिक-आर्थिक न्याय एक व्यावहारिक आवश्यकता
इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्याय महज आदर्श चीज नहीं है और इसे सामाजिक संरचनाओं में जड़ें जमानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘समाज के बड़े हिस्से को हाशिए पर रखने वाली संरचनात्मक असमानताओं पर ध्यान दिए बिना कोई भी राष्ट्र वास्तव में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में, स्थिरता, सामाजिक सामंजस्य और विकास प्राप्त करने के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय एक व्यावहारिक आवश्यकता है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह सिर्फ पुनर्वितरण या कल्याण का मामला नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने, उसकी पूरी मानवीय क्षमता का एहसास कराने और देश के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेने में सक्षम बनाने के बारे में भी है। उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार, किसी भी देश के लिए, सामाजिक-आर्थिक न्याय राष्ट्रीय प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह सुनिश्चित करता है कि विकास समावेशी हो, अवसरों का समान वितरण हो और सभी व्यक्ति, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, सम्मान और स्वतंत्रता के साथ रह सकें।’’